गुरुवार, 10 जनवरी 2019

अगियाबीर कोट--एक अनछुआ इतिहास .-2

अगियाबीर का इतिहास कितना पुराना है ये मैं नही कह सकता लेकिन जहाँ से मैं इस कथा को शुरू कर रहा वो लगभग 1100 ईसवी के आसपास की है। यह इतिहास कही समेटा तो नही गया लेकिन भदोही गजट जो कि सरकारी अभिलेख है उसमें थोड़ा जिक्र जरूर है उन बातों का जो मैं कहने जा रहा हूँ,और यह कहानी मैं पीढ़ी दर पीढ़ी सुनता आ रहा हूँ, न सिर्फ अपने घर के पूर्वजों से बल्कि अगियाबीर टिले पर रह रहे लोगो ने भी वही बात बताई जो आगे मैं बताने जा रहा हूँ।
उस समय आज के भदोही में भर जाती के राजा जिन्हें भार राजा कहा गया का शासन था,इनका साम्राज्य मिर्जापुर के गंगा इस पार के इलाकों के साथ जौनपुर के भी कुछ भूभाग पर कब्जा था। भर राजा एक अत्याचारी व भोग विलास वाला राजा था जिसके अत्याचार से प्रजा बहुत दुखी थी।
हमने इतिहास में तमाम क्रूर निरंकुश और अत्याचारी राजाओं का जिक्र पढ़ा है लेकिन भर राजा उसने कही ज्यादा अत्याचारी था,उस समय हालात ये थे कि यदि किसी के घर शादी करके बहू आयी है तो उसे बहू को पहले भर राजा की सेवा में प्रस्तुत करना पड़ता था ,अन्यथा अंजाम भुगतने को तैयार रहना होता था,इसी तरह लडकिया बड़ी हो जाने पर राजा के दूत जो घूम के राजा की अय्याशी के लिए लडकिया पसंद किया करते थे और जो पसंद आ गयी उन्हें विवाह से पूर्व उन्हें भर राजा के अगियाबीर कोट में भेजना जरूरी होता था, डर और भय का आलम ये था कि बड़ी हो रही लडकिया घर से निकलना बंद कर दी थी ,जिनकी लडकिया बड़ी हो जाती वो जब तक विवाह न जो उन्हें अन्य जगह अपने रिश्तेदारों के घर भेज देते थे।
बहुओं के डोली को पहले अगियाबीर कोट में भेजने के कारण बाहरी लोग यहाँ के लोगो से अपनी कन्या का विवाह तक बंद कर दिए थे। जिन बहुओं व बेटियों को अगियाबीर भेजा जाता था उनमे से अधिकांश आत्महत्या कर लेती थी,तो कुछ हालात से समझौता कर अपने जीवन को आगे बढ़ाती थी। 
जनता इस अत्याचार से कराह उठी थी लेकिन राजा के खिलाफ कही कोई आवाज नही उठ रही थी, राजा के अलावा उसके सैनिक भी नगर में इस तरह के भोग विलास में लिप्त रहते थे।
उस समय देश मे छोटे छोटे राजवाड़े हुआ करते थे जिनके संसाधन और सैनिक ताकत सीमित हुआ करती थी ,भरो के इस आतंक से परेशान जनता आसपास के रजवाड़ो में मदद के लिए भी गयी लेकिन भार राजा की खिलाफत करने की ताकत किसी भी पड़ोसी राज में नही थी जिसका कारण ये था कि भार राजा और उसके सैनिक बहुत बलिष्ठ ,ताकतवर थे ,उनलोगों का मुख्य आहार सुवर और भेड़ था जो नित्य का भोजन हुआ करता था जिससे उनकी ताकत ऐसी थी कि 5 आदमियों पर भार के सिपाही भारी पड़ते थे । और पशु वध उनकी दिनचर्या थी जिसके कारण उनमे क्रूरता भी भर गयी थी अपने विरोधियो की वे निर्मम तरीके से और सरेआम हत्या करते थे जिसके कारण उनका भय लोगो मे घर कर गया था।
उसी समय मर्यादपट्टी के एक ब्राह्मण की कन्या को अगियाबीर कोट भेजने के लिए भार राजा का संदेश आ गया, उक्त ब्राह्मण जो काफी सम्पन्न और समाज के प्रतिष्टित व्यक्ति थे उनके लिए बहुत विकट घड़ी आ गयी, अगर राजा की बात न माने तो राजा के सैनिक आकर बेटी को तो ले ही जायेंगे साथ ही कत्लेआम कर जायेगे ,और जिस बेटी को लाड़ प्यार से बड़ा किया उसे कैसे अत्याचारी के पास उसकी हैवानियत की शिकार बनने भेज दे।
ब्राह्मण को जब कुछ न सुझा वो अपने पूरे परिवार को छोड़ रात में प्रयागराज पलायन कर गए।
उसी समय राजस्थान के उमरगढ़ राजघराने के छोटे युवराज राम सिंह तीर्थयात्रा पर प्रयाग आये थे और संगम किनारे ही उनका शिविर लगा था ,उधर वो ब्राह्मण सुबह के समय जब राजा राम सिंह स्नान कर रहे थे संगम में आत्महत्या के नियत से कूद पड़ा ,लेकिन राजा और उनके सैनिकों की नजर संगम में कूदे उस ब्राह्मण पर पड़ गयी और सैनिकों ने डुबकी लगाकर ब्राह्मण को बचा लिया और राजा राम सिंह के पास ले गए।
राम सिंह ने जब ब्राह्मण से पूछा कि इस तरह की कायरत भरी हरकत आखिर किस लिए कर रहे हो, तो ब्राह्मण ने अपनी आपबीती में सारी बात बताई और युवराज से गुहार लगाते हुए कहा कि जब मैं अपने परिवार और बेटी की सुरक्षा नही कर सकता तो मेरा जीवित रहना पाप है इसलिए अपने जीवन को समाप्त करने आया हूँ।
भार राजा के अत्याचार के बारे में सुनकर युवराज राम सिंह को यकीन नही हुआ कि एक राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना अत्याचारी और क्रूर कैसे हो सकता है ,और अपनी ही राज की बहू बेटियों के साथ हैवानियत करेगा। ब्राह्मण द्वारा कही गयी बात की सत्यता को जानने के लिए युवराज ने अपने 2 गुप्तचरों को भदोही भेजा ,वे गुप्तचर जब भदोही से वापस लौट और बताया कि ब्राह्मण ने जितना कहा है ,भर राजा का अत्याचार उससे कही ज्यादा है प्रजा कराह रही है।
इन सब बातों को जान कर युवराज़ ने संगम किनारे ही गंगा जल को हाथ मे उठा शपथ लिया कि भदोही की जनता को इस अत्याचार से मुक्ति दिलाकर ही वापस उमरगढ़ लौटेंगे।
युवराज ने अपने सैनिकों को शिविर उठाकर भदोही कूच का आदेश दे दिया ,लेकिन युवराज के गुप्तचरों ने बताया कि भार राजा और उसके सैनिकों के सामने हमारी छोटी सी सैनिकों की टुकड़ी कमजोर साबित होगी ,युवराज के पास महज 200 सैनिक थे क्योंकि वो तीर्थयात्रा में निकले थे। लेकिन राम सिंह ने कहा कि राजपूत का जन्म ही इंसान की रक्षा के लिए होता है मैंने ब्राह्मण को गंगा जल उठा कर वचन दे दिया है , अब जिंदा लौट के तभी राजपूताने जाऊँगा जब वचन पूरा कर लूंगा और यही मेरी असली तीर्थयात्रा होगी।
#शेष #जारी ...
कैसे 200 सैनिको ने लड़ा युद्ध,
,क्या फिर कोई डोली भार राजा उठवा सका,,
कौन छला गया मुहब्बत में,
किसने इश्क में अपने परिवार को कर दिया दुश्मनों के हवाले,,
क्या राम सिंह का वचन हो सका पूरा।
और क्या छुपा है अगियाबीर कोट में
...2 दिन बाद।

बुधवार, 9 जनवरी 2019

अगियाबीर कोट--एक अनछुआ इतिहास .


अगियाबीर कोट--एक अनछुआ इतिहास .





एक ऐतिहासिक स्थल, जिसे इतिहासकारों ने छूना नही चाहा।। न गूगल पर कोई जानकारी मिलेगी न इतिहास के किसी पन्ने पर।
रहस्य, रोमांच, प्रेम समर्पण ,प्यार में धोखा,एक अत्याचारी का शाशन,राजा का जनता के प्रति समर्पण । ये तमाम बातें वाराणासी से 38 किमी दूर कटका रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर गंगा किनारे 1 किलोमीटर के दायरे में फैले अगियाबीर के इस टिलेके नीचे सुप्त पड़ा है।,वर्षो तक कोई मानने को तैयार नही था कि इस टिले के नीचे मानव की सभ्यता छुपी है,लेकिन विगत कुछ सालों से बी एच यू की इतिहास विभाग की एक टीम यहाँ खुदाई कर रही है जिसे टिले के नीचे से मानव सभ्यता के सबूत मिले है,पिछले साल 7 हंडे व एक विशाल तलवार भी मिला जिसे विभाग के लोग शोध के लिए ले गए।
एक साथ यहाँ की गाथा लिखना न तो मेरे लिए संभव है न पाठकों के लिए पढ़ना संभव है।
मेरा प्रयास है कि 2 या 4 दिन पर आपको थोड़ा थोड़ा इस इतिहास से परिचय कराता रहूं।

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

मै हवा हू

न सोच मै छुप के नजर रखता हु तुमपे ,
तुमको छूकर लौटती हवाए तेरा हाल कहती है
कभी सर्द कभी गर्म कभी खुशबु भरी हवाए
जब मेरे पास से गुजरती है
सच मानो ,तेरी हर साँस की खबर कहती है
मै चुप हु तो न समझो
मुझे हवाओ को भापना नहीं आता
मै हवा हू , हवा को समां लेता हु ,और एक दिन हवा में मिल हो जाउगा

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

अर्थ

हर इबारत मे कई अर्थ छुपे होते है,
हमे जो अच्छा लगता है,हम वही समझ लेते है।

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

सच


मै सच बोलता हू
आजमा के देख लेना।
आजमाने से पहले सौ बार सोच लेना,
दिल तुमहारा टूट ना जाये
क्योकी मै सच बोलता हू
और तुम भी तो मुझे
अपना आइना समझते हो,
कया तुम्हे अच्छा लगेगा
कि आइना तुमहारा सच ना बोले।

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

खिलौने

सब के सब खिलौने मे बहक जाते है,
बेटा रबर के गुड्डे मे,
बाप चमड़े के गुड्डे मे।

आमने सामने

अबकी बार बात, आमने सामने होगी। 
मै भी तो देखू,कैसे आँखे झूठ बोलती है।

बात

बात अधुरी न छोड़ा करो
मेरे जागते न सोया करो
गर उजाले मे ना मिले 
अन्धेरे मे हाथ बढाया करो।

मंगलवार, 15 मई 2012

वक्त

अजनबी भला हम कब थे
वक्त ने जुबा पे पहरा बिठा रखा था
तुम जब सामने होते थे
हम असमान झाका करते थे
अजनबी कभी न थे तुम
वक्त ने आँखों को शून्य बना रखा था

बुधवार, 9 मई 2012

सफर

अब और चलना भला हम कहा चाहे
क्या करे लेकिन मिलता नहीं कोई ठिकाना।
सच कहू अब और चला जाता नहीं
उफ़! मगर ठौर कोई भाता भी नहीं।


शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

जिन्दा हू

बिन तुम्हारे,जिन्दा हू आजतक,

तुम्हे हो भले यकीं,मुझे नही होता।

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

काम

हम निकम्मे हुये अपनो के
काम एसा थमा दिया तुने,
बेहतर था ठुकरा देती हमे
कुछ शेर लिखकर गालिब़ ही कहलाते।

तुम्हारा शहर


इस शहर में दिन बिताना हुआ मुश्किल
बरसते है पत्थर सर बचाना है मुश्किल।
बारिश के बूंद से पड़ जाते है छाले
ऐसे तमाशे से मुझको बचा ले।
सच्ची है बात मानो न मानो
अब तक तो जिन्दा हु आगे तुम जानो ।
तुम्हारा शहर अब तुम्हारे हवाले
मुझको पड़े है अब जान के लाले ।

जीवन

सपनो के लिये सोना पड़ता है
पाने के लिये कुछ खोना पड़ता है।
खोकर भी गर ना मिला कुछ
सच मानो,
जीवन को फिर ढोना पड़ता है।

वक्त

पढा तो जाउगाँ मै भी एक दिन
लेकिन सिर्फ शायरी की तरह।
जानता हू मुझको भी एक दिन
वक्त बदल देगा डायरी की तरह।

रिश्ते

रिश्ते दर्द देते है,
ना बने तो बेहतर।
कट ही जायेगी यू ही जिंदगी
बियाबान मे चलते चलते।

राज

दिल में कुछ राज अब भी दफ़न है
साथ जाएगा मेरे ,मेरा तो वही कफ़न है

मुहब्बत

सुना था मुहब्बत सिर्फ किताबो में होती है
जीवन को हमने एक किताब बना डाली।
पन्ने पन्ने पे दिखेगा लिखा नाम तुम्हारा
बस एक बार आँखों को बंद करके तो पढो ।

यहाँ मत आओ

तुम शहर के लोग यहाँ मत आओ
मै गाव हु शहर यहाँ मत बसाओ।
साँझ ढलते सो जाते है हम
सारी रात अब हमें न जगाओ ।
बहुत दिन से सोया नहीं
मै सो रहा तुम भी सो जाओ
मै गाव हु शहर यहाँ मत बसाओ ।

तुम क्या जानो

छू कर हाथ तुम्हे जल जाता
काश समझ ये मुझको आता,
तुम क्या जानो सिवाय स्पर्श बिन
मन कैसे उसर बन जाता ।