सोमवार, 27 सितंबर 2010

जब पाप मुझसे डरते थे।

अगर मै कहू कि मेरे बचपन मे मेरे पापा मुझसे डरते थे, तो शायद ही किसी को यकीन हो लेकिन जिस तरह .यह सच है कि सभ्य आदमी शौच के बाद हाथ धोता है, उसी तरह यह बात उतनी ही सच है कि पापा मुझसे डरे सहमे और घबराये रहते थे.यह बात आज से पहले सिर्फ अम्मा ही जानती थी.
यह उन दिनो की बात है जब मै लगभग 4 साल का था और पापा ,अम्मा के साथ मालटारी मे रहता था. पापा वहा गांधी पी.जी. काँलेज मे हिन्दी के लेक्चरर थे। राहुल (भइया) और रोली (दीदी) गांव मे बाबु माई (दादा दादी ) के साथ रहकर प्रइमरी पाठशाला मे पढते थे। उस समय राहुल 2 मे और रोली 4 मे पढती थी लेकिन मै नही पढता था क्योकी पापा का छोटा बेटा होने के कारण मेरा उपर उनका विशेष स्नेह था। पापा काफी प्रयोगवादी है उन्होने मेरे उपर भी एक अभीनव प्रयोग करते हुये स्कूल मे मेरा दाखिला तब कराया जब मै 7 साल का प्रौढ बालक हो चुका था । इस अभीनव प्रयोग के पीछे पापा का तर्क यह था कि 7 साल की उम्र मे बच्चे का दिमाग तेज हो जाता है और उससे वो किताबो और मास्टर की बातो को ठीक से समझेगा ,पढाइ मे काफी तेज होगा। बहरहाल बात करते है जब मै 4 साल का था ,और पापा मुछसे डरते थे।
पापा मेरी शारीरीक ताकत या दिमागी खुराफात से नही बल्कि मेरी जुबान से डरते थे क्योकी महज 4 की उम्र मे मैने जितनी गालीया सीख ली थी वो खुद मे एक रिकार्ड था , बस अफसोस इस बात का है कि पापा ने मेरी इस क्षमता को गिनीज बुक मे दर्ज कराने का कोइ प्रयास नही कीया अन्यथा सबसे कम उम्र मे गिनीज बुक मे शामिल होने का भी रिकार्ड भी मेरे नाम ही होता। यही गालीया पापा क बसे परेशानी का कारण थी क्योकी वे खुद तो सुबह शाम रोज के नाश्ते के साथ मेरी गालीया भी खाने के आदी हो चुके थे लेकीन उनके लिये वो समय बडी चुनौती वाला होता था जब उनसे मिलने उनका कोई मित्र दोस्त आ जाता था,और उस समय मै यदि गाली देने के मुड मे होता था तो पापा के मित्रो को उनकी मित्रता की किमत मेरी गालीया सुन कर मिल जाती थी। यही पापा का सबसे बडा डर था कि मै उनकी इज्जत उनके मित्रो को गालीया देकर उतार देता हालत यहा तक पहुच गयी कि पापा अपने किसी जानने वाले को घर नही बुलाना चाहते थे। ऐसा भी नही था कि पाप मुझे गालीया देने
से रोकते नही थे, बल्कि वे अपने बचपन से जवानी तक की सहेज कर रखी सारी ताकत मुझे कूटने पिटने मे ही इस्तेमाल कर दिये,लेकीन मै भी अपने बाप का बेटा था उनके हर मुक्के और लात से मानो मुझे नयी उर्जा
मिलती थी, और जिस समय पापा मुझे पिटते थे मै उनके यार ,रिश्तेदार से लेकर उनके स्कुटर,पेन ,काँलेज,और शौच के लोटे तक की माँ चोद देता था।
पापा मेरी इस हरकत से लाचार हो चुके थे, जान से मारने के अलावा वे हर सजा दे चुके थे ,
मेरी गाली पापा की सबसे बडी तत्कालीन समस्या बन चुकी थी,जिससे छुटकारे के लिये ओझा मौलवी तक की शरण मे भी गये लकीन उन्हे समस्या का समाधान कही नही मिला। उधर मेरी गालीयो का हाल ये था कि आस पडोस के लोग घर से निकलने से पहले ये देखते थे कि रास्ते मे कही रोहित तो नही खडा है,ठीक उसी तरह जैसे लोग मुहल्ले के पागल कुत्ते के देखकर या को रास्ता बदल लेते है या कुत्त्ते का रास्ता छोडने का इन्तजार करते है। मै घीरे धीरे पडोसीयो के लिये भी समस्या बनता जा रहा था, ,पापा उस समय वहा सबसे वरिष्ठ और एकमात्र पी.एच.डी. होल्डर थे जिसके कारण मालटारी के लोग पापा का काफी सम्मान करते थे, और शायद इसिलिये मेरी हरकतो को लोग नजरअन्दाज करते थे । लोग पापा के सम्मान मुझे बख्श देते, और मै सोचता था कि लोग मुझसे डरने लगे है।
धीरे धीरे मेरी प्रतीभा कुलाचे भरने लगी और कुछ लोग मुझे अप्रत्याशित रुप से चाहने,मानने लगे, मुझे मानने वालो का अलग स्वार्थ था। जिस तरह मुहल्ले मे रहने वाले किसी गुन्डे को मुहल्ले के ही कुछ लोग इसलिये पटाकर रखते है कि उससे न सिर्फ उनका बचाव होगा बल्कि अन्य पडोसियो को मौका पडने पर डराने धमकाने के काम भी वो गुन्डा आता है। उसी तरह मालटारी वाले मेरा खुब इस्तेमाल करते थे,
मेरे इस दिव्य ज्ञान का सर्वाधिक लाभ डा. शारदा प्रसाद सिंह उठाया। शारदा जी एक तीर से दो नही बल्कि दर्जनो शिकार करने मे माहिर थे,और मै उनके लिये तीर नही तोप था,जिसे वे मालटारी मे जबतब दागते रहते थे। उनकी वहा के लोगो से कभी नही पटी क्योकी वे खुद को सबसे योग्य और बुद्धीमान समझते थे और कोइ यह मानने को तैयार नही था जिसके कारण सारी मालटारी भारत और शारदा चाचा पाकिस्तान की भूमीका मे रहते थे । जिस तरह भारत चुप रहता है और पाकिस्तान लगातार घुसपैठीयो के सहारे भारत पे हमले करता रहता है ,उसी तरह शारदा चाचा भी मालटारी वालो पे हमले की फीराक मे रहते थे। वे अक्सर मेरी नासनझी का फायदा उठा कर मुझे ये समझा देते की फला आदमी तुम्हे या तुम्हारे पापा को गाली दे रहा था, उनका ये कहना हैण्डग्रेनेड से पिन खिचने की तरह होता था, और मै फला के दरवाजे पर पहुच कर उसे तबतक गालीया देता रहता जबतक इसकी सूचना पापा को न मील जाये और वे आकर मुझे पिटते हुये ले नही जाते। ये वाकया वहा अक्सर देखने को मिल जाता था,और उस दिन खुशि के मारे शारदा चाचा दो रोटी अधिक खाते थे, और अगले दिन मुझे भी चार आने की चार वाली आठ-दस लेमनचुस खिलाने के साथ,कुछ नई गालीया भी सिखा देता थे।
उन दिनो पुरे देश मे संजय गांधी का आंतक था,जबरन नसबंदी कराये जाने से आम आदमी परेशान था लेकीन मालटारी के लोग मुझसे मुक्ति चाहते थे , पापा के कुछ दोस्तो ने उन्हे सुझाव दिया की आपता बच्चा बडा हो गया . है अब इसका किसी स्कुल मे दाखिला करा दे, इसके पिछे उन लोगो की मन्शा सिर्फ ये थी कि मै जितने देर स्कूल मे रहुगाँ उतने समय वे लोग चैन से रहेगे, लेकिन पापा का फन्डा मेरे बारे मे एकदम साफ था.वो मुझे किसी हाल मे7 साल से पहले स्कूल मे नही डालना चाहते थे।

अभी बाते और भी है, लेकीन कुछ दिन बाद।

6 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रचना पोस्ट की है ........

    जाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
    काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....

    अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये

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  2. बचपन में सभी बच्चों के रूठ जाने से डरते हैं...अच्छी पोस्ट

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. अच्छा पोस्ट, लेकिन हिंदी भाषा की शुद्धता का भी ख़याल रखें...

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  5. रोहित भैया बहुत सुन्दर तरीके से आपने अपने बचपन की यादो को परोसा है / मुझे भी अपनी कुछ बदमाशिया (कारनामे) याद आ गए /
    http://poemnstory.blogspot.com/

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