उनके बिना आज बिलकुल अकेला हू।
उनके बिना आज पहला है मेला,
मेले मे लेकिन मै बिलकुल अकेला हू।
बरगद की छांव अब सर पे नही है,
मेले मे चेहरे भी सारे वही है ,
सब कुछ सही है, सिर्फ वे ही नही है।
(28 दिस. की रात पापा की याद में। )
अकेलापन
खुद से लडने का भरपुर मौका देता है।
जब दुनिया पीठ दिखाती है,
तो अकेले,
अकेलापन आलिंगन को बुलाता है
अकेलापन
हवा के विपरीत चलने का जज्बा देता है.।
अकेलापन
अपनो के लिये जी भरकर रोने का मौका देता है।
मालटारी मे मेरा आंतक बदस्तुर जारी था, हालत यहा तक आ पहुची कि अब तो लोग ने अपने बच्चो पर मुझसे बात करने या मेरे साथ खेलने पर अघोषित प्रतिबंध लगा दिया था। लोगो को यह डर सताने लगा था कि रोहित के कारण उनके बच्चे न बिगड जाये,जिसके कारण मै अब खुद को अकेला पाने लगा था, मै जब घर से बाहर निकलता तो लोग अपने बच्चो को घर मे वापस बुला लेते थे। मै सोचता था कि बच्चे मुझसे डर कर घर मे लौट जाते है, लेकिन ये हकीकत मुझे बाद मे पता चला कि मेरी तुलना कटहे कुत्ते से की जाती थी और जिस तरह लोग कटहे कुत्ते को देखकर रास्ता बदल देते थे कुछ इसी तरह क भुमिका मेरी थी ।
उधर लाड दुलार और लात से मेरा गालीयाँ छुडाने मे जब पापा हार गये तो उन्हाने मेरी गालीयो से अपने दोस्तो को बचाने का एक अजुबा हथियार खोज निकाला था ,पापा ने एक दिन बडे प्यार से पुचकारते हुये मुझसे कहा कि बेटा तुम आजकल कोइ बढिया गाली नही दे रहे हो,मेरी बडी बेइज्जती हो रही है। मै चिन्ता मे पड गया और पुछा पापा कोइ खुब बढिया और बडी गाली बताइये,पापा को मानो मुहमागी मुराद मिल गयी और वे इस मौके को हरगीज गवाना नही चाहते थे, उन्होने तुरंत मुझसे मेरे कान मे घिरे से कहा कि किसी को बताना मत, सबसे बडी गाली होती है,मै चुतिया हुँ,मै कमिना हुँ, मै कुत्ता हुँ । पापा से ज्ञान पाकर मेरे चेहरे पर गजब सी चमक आ गयी थी मानो जैसे महाभारत मे अर्जुन को कन्हैया का साथ मिल गया था। मै इस ब्रह्मास्त्र को अजमाने के लिये बेचैन हो उठा था ,कोइ शिकार न देखकर मैने पापा पर ही मै चुतिया हुँ,मै कमिना हुँ, का ब्रह्मास्त्र छोड दिया और पापा ने अनमने ही हाँ बहुत अच्छा कहकर इस ब्रह्मास्त्र के प्रक्षेपण को सफलता पुर्वक लक्ष्य पर मार करने का प्रमाण दे दीया।
अब क्या था , मै रोज सुबह शाम मालटारी मे ब्रह्मास्त्र दागने लगा । लोग मुछपर हसते और मै समझता कि अब लोगो को मेरी गालियाँ अच्छी लगने लगी है ।
शारदा चाचा का पापा से चिढना या बैर रखने का एक कारण ये भी था की पापा अक्सर अपनी कहानीयो मे (पापा ने 500 से अधिक कहानी अखबारो और पत्रिकाओ लिखी है ) उन्हे ही पात्र बनाया करते थे और उनकी सारी करस्तानी सार्वजनिक हो जाती थी । दरअसल शारदा चाच का चरित्र किसी अजुबे से कम न था ,कोइ भी साहित्य का अदमी उन पर रोज एक कहानी लिख सकता है.और यही गुस्ताखी पापा अक्सर करते थे,जिसके कारण वे मुझे बर्बाद करने पर तुले थे ।
(आज अब इतना ही, आगे बताउगा कि जब मैने उस आदमी को बडकी गाली दी जो बाद मे देश का प्रधानमंत्री बना और पापा की शारदा चाचा पर लिखी कुछ कहानी भी ,थोडा इंतजार करें ।)
इसे पढने से पुर्व जब पाप मुझसे डरते थे ।http://rohitbanarasi.blogspot.com/2010/09/blog-post.html जरुर पढे